Friday, 4 September 2015

गुजराती साहित्य में भालण कृत ‘रामविवाह आख्यान’

गुजराती साहित्य में भालण कृत ‘रामविवाह आख्यान’
भारतीय साहित्य में रामायण की कथा साहित्यिक और धार्मिक दोनों तरह से महत्व रखती हैं | भारत की सभी भाषाओँ में इस कथा पर लिखा साहित्य मिलता हैं | इसे गुजराती भाषा का साहित्य भी अनछुआ नहीं रहा | मध्यकाल से ही गुजराती साहित्य में रामकथा पर कई स्वरुप की कई साहित्यिक कृतियाँ लिखी गयी हैं | जैसे भालण ने ही ‘रामविवाह आख्यान’ के अलावा ‘रामबालचरित्र के पद’, ‘मामकी आख्यान’, ‘सीताहरण’, ‘अंगदविष्टि’, ‘रामायण(अपूर्ण) कृति भी रामकथा के परिपेक्ष्य में लिखें हैं | उसके बाद नाकर ‘रामायण’ और लव-कुश आखयान’ लिखा है; विष्णुदास, वजियो, लक्ष्मीदास, समयसुंदर, प्रेमानंद, गोंविद, शामल, पूरीबाई, कृष्णाबाई, प्रीतम, दयाराम जैसे मध्यकालीन अनेक कविओं ने रामकथा पर आख्यान लिखें हैं |
भालण कृत ‘रामविवाह आख्यान’ की एक ही प्रत भो.जे.विद्याभवन- अहमदाबाद में उपलब्ध हैं | आख्यान प्रसिध्ध कृतियों के लोक प्रचलित प्रसंगों पर आधारित गेय मध्यकालीन साहित्य स्वरुप हैं | २१ कड़वा में विस्तृत इस आख्यान का संपादन गुजराती साहित्य के साहित्यकार डॉ. बलवंत जानी ने ‘भालण कृत ‘रामविवाह आख्यान’ स्वाध्याय और वचना पुस्तक में किया हैं | इस पुस्तक में डॉ. बलवंत जानी ने ‘रामविवाह आख्यान’ की हस्तप्रत के ऊपर से शास्त्रीय वाचना दी हैं और इस विषय अनुसंधानित साहित्यकार भालण के समय औरे उसकी कृतिओं के विषय में भी गहन अध्ययन इस पुस्तक में प्रस्तुत किया हैं | उसके साथ उन्होंने इस पुस्तक में मध्यकालीन ‘रामविवाह आख्यान’ की मूल प्रत को दिया वांचन हेतु दिया हैं, साथ में लिपि परिचय, प्रत परिचय, संपादन करने की पध्धति, कथासार औरे कठिन शब्दों की सूचि भी दी हुई हैं |
कवि भालण गुजराती साहित्य में आख्यान के पिता कहलातें हैं | गुजराती साहित्य में विषयसामग्री और निरूपणरीति में उल्लेखनीय प्रदान दिया हैं | उन्होंने रामकथा, कृष्ण कथानक, शिवकथानक, शक्तिकथानक औरे महाभारत के प्रसंगो पर आख्यान का निर्माण किया हैं | कई कृतियाँ काव्यात्मक स्वरुप में हैं, तो कई कृतियाँ कड़वाबद्ध् स्वरुप में लिखी गई हैं, या फिर पदबंध और कड़वा का मिश्र स्वरुप भी उनकी कृतिओं में देखनें को मिलता हैं | चुकी उनके समय में आखयान का निश्चित स्वरुप प्रकाश में नहीं आया था इसलिये उनके आख्यानों में कई जगह स्पष्ट आख्यानिक विलक्षणता नहीं देखनें को मिलती जितनी उनके बाद के आख्यान कवि प्रेमानंद में दिखाय देती हैं | रामायण के परिपेक्ष में उन्होंने ‘रामविवाह आख्यान’ के अतिरिक्त राम के पात्र को विशिष्ट महत्व देने हेतु रामबाल चरित्र के कई पदों के भी रचना की हैं | पूरे ‘रामायण’ की कृति उनकी पूर्ण नहीं हो पाई |इन सब उनकी रचनाओं का अभ्यास करने के बाद भालण हमें रामभक्त जरुज दिखाय देंगे |
आख्यान मध्यकालीन ऐसा साहित्यक स्वरुप हे जिसमें आपको महाकाव्य, खंडकाव्य या कथाशैली के कोई भी स्वरुप को देख सकते हैं औरे उसमे कई सारी महाकाव्यों, या उनके प्रसंगों या मिश्र प्रसंगों की कथाओं का आलेखन मिलता हैं | संस्कृत काव्य साहित्य में भी जो महाकाव्य परम्परा मिलती हैं उसी प्रकार की शैली को गुजराती मध्यकालीन साहित्य में आख्यान काव्य स्वरुप कहे सकते हैं ,जो ज्यादातर महाकाव्य के स्वरुप से तो प्रमाण में छोटी होती हैं | आख्यान कथा ‘कड़वा’ में विभाजित होती हैं | उसमे आते पद को ‘कड़ी’ कहते है | ‘कड़वा’ के आरम्भं के दो पद ‘मुखबंध’ कहलाते हैं और उसमें ‘कड़वा’ में आनेवाली कथा की पूर्वभूमिका होती हैं, जबकि ‘कड़वा’ के बीच के भाग को ‘ढाल’ कहते हैं | जिसमे मुख्य कथानक आता हैं और वो निश्चित राग में लिखा जाता हैं | कड़वा के अंत की दो कड़ी को ‘वलण’ या ‘उठलो’ कहते है, जिसमें उसके बाद आनेवाली कथा का अंश होता हैं | गुजराती में आख्यान लिखे गए उसमें प्रारभं में ईश्वर स्तुति के साथ ‘मंगलाचरण’ से होता है, और अंत आख्यान की ‘फलश्रुति’ के साथ होता हैं | गुजराती साहित्य में जो आख्यान स्वरुप हे उसमें मध्यकालीन गुजराती भाषा, उस समय-स्थल के वर्णन, समकालीन रीति-रिवाज, बोली, जनसमुदाय की ज़कियाँ और उसके साथ पौराणिक प्रसंगालेखन भी घुल-मिल गए महसूस होते हैं | उस समय लिखे किसी भी आख्यान में आपको गुजराती सामाजिक-आर्थिक-धार्मिक-राजकीय परिवेश का संदर्भ मिलता हैं | जिसके लिए मुनिश्री हेमचंद्राचार्य अपने ग्रन्थ ‘काव्यानुशासन’ में “आख्यानकसंज्ञा तल्लभते यद्यमिनयन पठन गायन” व्याख्या देते हैं |इस कथामूलक काव्य स्वरुप में कई छंद का भी उपयोग किया जाता हैं | उसमे पुराण, इतिहास और कल्पना का संमिश्रण होता हैं | उसमें कथा विषय को कड़वा में विभाजित किया जाता हैं|
‘रामविवाह आख्यान’ का प्रारम्भ राग केदारो में राम को प्रणाम करके फिर लम्बोदर गणेश की स्तुति करते हैं, फिर रघुनाथ के विवाह का प्रसंग ही आख्यानकार ने क्यों पसंद किया उस इच्छा को दर्शाया हैं | कथा का प्रारम्भ करते ऋषि विश्वामित्र राक्षसों से अपने यज्ञ की रक्षा हेतु सूर्यवंशी राजा दशरथ के पास पुत्र राम की मदद लेने अयोध्या आते है, यह प्रथम ‘कड़वा’ समाप्त होता हैं | फिर एक के बाद एक २१ कड़वा में राम के बालकाण्ड से जुड़े कई प्रसंग को जोड़ कर रामविवाह तक के प्रसंग को विस्तार से आलेखन किया गया हैं | उसके बाद राज्यसभा में  विश्वामित्र का स्वागत, मारीच आदि राक्षसों से उत्पन हुई समस्या आलेखन और राम को अपने साथ में जाने की बात रखना | दशरथ राजा का भावुक होना और राम की जगह पर खुद के आने का प्रस्ताव रखना | इस कथन पर राम के प्रभाव का विश्वमित्र द्वारा गुणगान और ऋषि वशिष्ठ के उसमे सम्मति दे कर राम-लक्ष्मण को ऋषि विशामित्र के साथ वन में भेजने की कथा के विस्तारपूर्वक वर्णन चौथे ‘कड़वा’ अंत होता हैं |
अब कथा आगे बढ़कर ऋषि विश्वामित्र राम-लक्ष्मण को रस्ते में बला-अतिबला की विद्या सिखतें हैं | आगे बढ़ते दो रास्तें आते है, जहाँ से एक रास्ता ताड़का राक्षस का ‘सुंदरवन’ है, क्षत्रिय धर्म का पालन करते दोनों भाई ‘ताड़का, मारीच, सुबाहु जैसे राक्षसों का वध कर(उद्धार कर), ऋषि विश्वामित्र के आशीष प्राप्त करते हैं | ऋषि विश्वामित्र को जब जनकराजा की और से सीता-स्वयंवर का निमंत्रण आता है और वहीँ आख्यानकार जनकराज, विदर्भ नगरी, सीता जन्मकथा और त्रम्बुक धनुष की कथा को मूल कथा के साथ जोड़ देते हैं | सीता-स्वयंवर में जनकराजा ने धनुषशाला में जो त्रम्बुक धनुष रखा है उसे जो उठा कर चढ़ा पाए उसी के साथ सीता का विवाह करने की शर्त रखी | लंकापति रावण मध्यरात्रि को चोरी-छुपे धनुष देखने और उठाने धनुषशाला में जा कर विफल होते हैं उसका वर्णन सातवें कडवे में होता हैं |  फिर आठवें कड़वे में भालण अपनी कला और शैली का प्रदर्शन करते विदर्भ नगरी जानेवाले रास्तों का प्राकृतिक वर्णन करते हैं | वहीं आख्यानकार गौतम ऋषि और उसकी पत्नी अह्ल्या की कथा, गौतम ऋषि का श्राप, इंद्र का व्यभिचार और मति भ्रमण की पौराणिक कथा को दो कड़वे में प्रस्तुत किया हैं | श्राप के अनुसार दशरथ पुत्र राम पाषाण बनी अहल्या को चरण स्पर्श करेंगें तभी उसे मुक्ति मिलेगी उस कथा का आलेखन यहाँ किया गया हैं | उसके बाद राम की कीर्ति चारों दिशाओं में फ़ैल जाती हैं, तब गंगा किनारें नाविक की कथा का आरम्भ होता हैं, नाविक राम को नावं में बिठाने से इनकार करता है, क्यूंकि राम के चरण स्पर्श से उसकी नावं स्त्री बन जाये तो , इसलिए ऋषि विश्वामित्र के कथन पर वो पहेले राम के पैरों को धोता हैं और फिर नावं में बैठ कर गंगा पार विदर्भ पहुचतें हैं | वहां राम-लक्ष्मण का राज्यमार्ग पर धन्यता से नगरजन और राजा स्वागत करते हैं | वहां सीता-स्वयंवर के लिए कई राज्य के राज आये हुए है, वहीँ विष्णु के अवतार राम और उनकी अर्जित कीर्ति के कारण ऋषि विश्वामित्र और राम-लक्ष्मण का स्वागत करते है | जानकी सीता राम को देखकर ही मन, वचन से अपना स्वामी मानती हैं |
चौद्वें कड़वे से सीता-स्वयंवर का वर्णन, त्रम्बुक धनुष का वर्णन, पृथ्वी के अनेक राजा के वर्णन और इतने बड़े धनुष को कोई उठा नहीं सकता वो बात सभागृह में चर्चा का विषय बनती हैं, सभी राजाओं की धनुष उठाने की असमर्थता को जान कर अंत में राम ये धनुष को उठा के चढाते है और ये शिव धनुष के दो टुकड़े हो जाते है, पूरी धरा हिल जाती हैं और सीता सहर्ष राम को वरमाला पहेनाती हैं |
अब सत्रह में कड़वे से उन्नीसवें कड़वे तक मिथिला नगरी के राजा जनक को सपरिवार निमंत्रण भेजना, वहां इस समाचार को जान उत्सव का माहोल, बारात में अठारा वर्ण के लोगों को सामिल कर आगे बढ़ना, उसमें ब्राह्मण, ज्योतिषी, कविओं, सोनी, वैश्य, क्षत्रिय, बनिया, गन्धर्वो जैसे विविध जाती और व्यवसाय के लोगों को बारात में मिथिला से विदर्भ नगरी ले जाया जाता हैं | उस सारे वर्णन को भालण ने इस आख्यान में पुरे गुजराती समाज के सामाजिक चित्र को उद्धुत किया हैं | यहाँ विवाह का वर्णन, उससे जुड़े रीति-रिवाज सभी में गुजराती समाज-व्यवस्था की ज़ाकियां मिलती हैं | खान-पान, रहन-सहन में भी गुजरात दिखाई देता हैं | देशी राग में गान की हुई गुजराती ग्राम्य रीति की लग्नविधि को सायद सामान्यजन के दिल में पहुचनें के लिए साधन के सामान उपयोग किया गया लगता हैं | फिर अंत में कन्यादान की विधि, विदर्भ का आतिथ्य सत्कार, बारात की बिदाई, परशुराम का आगमन और चारो तरफ फैलें आंनंद को व्यक्त किया हैं | फलश्रुति के इक्किस्वें कड़वे में
“विहवा राम लक्षमण तणो जे करे श्रवणे पान
ते मात उदरे आवे नहीं रे लक्ष चोरासी खाण ||२६८||
शीखे गाए सांभले ते वैकुंठ पामे वास
नव राग सोहामणा पदबंध लील विलास ||२६९||
धन्य गुरुनी क्रिया ऐ पुरण हवा सार
कर जोड़ी कहे भालण जन पदबंध करां विस्तार ||२७०||”
इस के बाद इस प्रत में ये आख्यान के लिखने की तिथि का वर्णन करता है, ‘१८५० के भाद्रवा वदी पांचम ने शंनेउ’ लिखा हैं | लिपिकार का नाम भी हस्तप्रत में लिखा होता हैं |
वाल्मिकी रामायण के बालकाण्ड या भारतीय कथासाहित्य में निरुपित रामायण से जुडी कथाओं, अहल्या कथा, नाविक कथा, सीता जन्म, धनुष महत्व, सीता-स्वयंवर और राम-विवाह की कथा को २१ कड़वा में जोड़कर एक साहित्यिक आख्यान कृति का निर्माण किया गया हैं | यहाँ राम की चरित्र की भव्यता को शब्दों में प्रदर्शित किया हैं | राम के चरित्र के निर्माण हेतु जितने भी कथानक उपयोगी हो सकते थे उसका पूरा परिचय दे कर उद्धत किया हैं | ये भलाण की कथनकला का परिचय देता हैं | अहल्या प्रसंग जो वाल्मीकि रामायण में इतना महत्व नहीं रखता उतनी विस्तृत कथा को यहाँ महत्व दिया है जो वाल्मीकि रामायण से इस आख्यान तो अलग करती हैं | यहाँ दशरथ का पितृ वात्सल्य, क्षत्रिय धर्म, राग के साथ मिला हुआ राम भक्ति का लय-गान, सामान्यजन भी समज सके उतनी सरलता से कथा को समकालीनता से भालण ने  जोड़ दिया हैं | वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के १ से ७७ सर्ग के सारे मुख्य कथा प्रसंगो को एक सूत्रता में नहीं पर ज्यादा-कम कथा का उपयोग कर अपनी सूज़-बुज़ से जोड़ा-तोड़ा हैं | जो प्रारम्भिक आख्यान स्वरुप की रचना में उल्लिख्नीय कहा जा सकता हैं | भारतीय कथासाहित्य में शतपथ ब्राह्मण से लेकर वैदिक साहित्य के अनेक ग्रंथो में या टीकाओं में अहल्या कथा, इंद्र कथा के विकास और बिज का उपयोग यहाँ विशेष तह राम के महत्व को दर्शाने के लिए उपयोग किया गया है, जिससे हम कह सकते है कि भालण साहित्य शास्त्रों का अभ्यास भी किया होगा |

इस प्रकार गुजराती मध्यकालीन साहित्य में आख्यान पिता भालण ने ‘रामविवाह आख्यान’ को रामायण का न केवल सामान्य गुजरातीजनों को या भावकों परिचय या आनंद देने के लिए सर्जन नहीं किया अपितु साहित्यकला को पौराणिक साहित्य, इतिहास और धार्मिकता से जोड़ कर भारतीय संस्कृति में अपना चिरकालीन योगदान भी दिया हैं | 

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